Thursday, November 21, 2024
Homeदेशशहीद दिवस: भगत सिंह के आखिरी पलों की अनकही दास्तां पढ़ें...

शहीद दिवस: भगत सिंह के आखिरी पलों की अनकही दास्तां पढ़ें…

भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव देश की खातिर हंसते-हंसते फंदे पर झूल गए. उनकी कुर्बानी के दिन को हम आज शहीद दिवस के रूप में मनाते हैं.

भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव देश की खातिर हंसते-हंसते फंदे पर झूल गए. उनकी कुर्बानी के दिन को हम आज शहीद दिवस के रूप में मनाते हैं. पूरा देश आज के दिन भगत सिंह और उनके साथियों को याद करता है. राजनीतिक पार्टियां भगत सिंह पर अपना-अपना दावा पेश करते तरह-तरह के आयोजन करते हैं. भगत सिंह आजादी के महानायक थे. बचपन से ही उनकी आंखों में आजादी के ख्वाब पलने लगे थे. बचपन में जब भगत सिंह अपने पिता के साथ खेत पर जाते थे तो पूछते थे हम जमीन में बंदूक क्यों नहीं उपजा सकते हैं. भगत सिंह ऐसा इसलिए कहते थे क्योंकि उन्हें देश के बाहर अंग्रेजों को भेजना था और क्रांतिकारियों के पास हथियार नहीं थे.

जालियावाला बाग कांड ने 12 साल के भगत सिंह को अंदर से हिला दिया जिसके बाद वो हमेशा के लिए क्रांतिकारी बन गए. शादी से दूर भागने वाले भगत सिंह आजादी को अपनी दुल्हन बनाना चाहते थे इसलिए घर परिवार छोड़कर वो कानपुर आ गए.

भगत सिंह अपने दिल की सुनते थे. भगवान को वो मानते नहीं थे. उन्होंने खुद को नास्तिक घोषित कर रखा था. इसके पीछे वजह हिंदू-मुस्लिम दंगा है जिसे लेकर भगत सिंह बहुत दुखी थे.

भगत सिंह के बारे में कहा जाता है कि वो एक कट्टर मार्क्सवादी थे, इसके बावजूद वो कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल होने से इंकार कर दिया. कहा जाता है कि उनके मित्र कामरेड सोहन सिंह उन्हें कम्युनिस्ट पार्टी में ले जाना चाहते थे, लेकिन उन्होंने साफ मना कर दिया. बताया जाता है कि जब फांसी के फंदे पर चढ़ने का फरमान पहुंचने के बाद जब जल्लाद उनके पास आया तब बिना सिर उठाए भगतसिंह ने कहा ‘ठहरो भाई, मैं लेनिन की जीवनी पढ़ रहा हूं. एक क्रांतिकारी दूसरे क्रां​तिकारी से मिल रहा है‘

ऐसे थे हमारे भगत सिंह जो सिर्फ अपने दिल की सुनते और मानते थे. भगत सिंह ने अंग्रेजों से लोहा लिया और असेंबली में बम फेंककर उन्हें सोती नींद से जगाने का काम किया था. असेंबली में बम फेंकने के बाद भगत सिंह वहां से भागे नहीं, बल्कि खुद को गिरफ्तार कराया. जिसके बाद उन्हें फांसी की सजा दी गई.

शहीद होने से पहले भगत सिंह ने एक खत लिखा था जिसमें कहा था, ‘साथियों स्वाभाविक है जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए. मैं इसे छिपाना नहीं चाहता हूं, लेकिन मैं एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूं कि कैंद होकर या पाबंद होकर न रहूं. मेरा नाम हिन्दुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है. क्रांतिकारी दलों के आदर्शों ने मुझे बहुत ऊंचा उठा दिया है, इतना ऊंचा कि जीवित रहने की स्थिति में मैं इससे ऊंचा नहीं हो सकता था. मेरे हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ने की सूरत में देश की माताएं अपने बच्चों के भगत सिंह की उम्मीद करेंगी. इससे आजादी के लिए कुर्बानी देने वालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना नामुमकिन हो जाएगा. आजकल मुझे खुद पर बहुत गर्व है. अब तो बड़ी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतजार है. कामना है कि यह और नजदीक हो जाए.’

भगत सिंह के ये आखिरी बोल सोए देशवासियों को जगाने का काम किया और अंग्रेजों के खिलाफ आवाज बुलंद होने लगे. आजादी के इस महानायक ने बताया कि जिंदगी भले ही छोटी हो लेकिन उसमें बड़े काम किए जा सकते हैं जो आपकों हमेशा के लिए अमर बना देता है.

Source :- www.newsstate.com

Leave a Reply

Must Read

spot_img