Friday, March 29, 2024
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लिव-इन रिश्ते में सहमति से हुए सेक्स को बलात्कार नहीं कह सकते: सुप्रीम कोर्ट

भारतीय सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि अगर लिव-इन रिलेशनशिप में पुरुष और महिला के बीच सहमति से शारीरिक सम्बन्ध बने और बाद में पुरुष शादी से मुक़र जाता है तो इसे बलात्कार नहीं कहा जा सकता.

सुप्रीम कोर्ट ने यह फ़ैसला बुधवार को एक मामले की सुनवाई करते हुए दिया.

महाराष्ट्र की एक नर्स ने अदालत में अपने लिव-इन पार्टनर पर बलात्कार का आरोप लगाते हुए एफ़आईआर कराई थी.

दरअसल, लिव-इन में रहने के बाद दोनों के बीच शादी को लेकर कुछ वादे हुए थे. लेकिन बाद में पुरुष अपने वादों से पीछे हट गया, जिसके बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया.

क्या है पूरा मामला

कानूनी मामलों के पत्रकार सुचित्र मोहंती ने बताया, ”सुप्रीम कोर्ट ने अपने फै़सले में कहा है कि लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के बाद सहमति से बनाया गया शारीरिक संबंध बलात्कार नहीं है. पीड़िता और अभियुक्त दोनों एक-दूसरे को पहले से जानते थे और काफ़ी समय से एक साथ रह रहे थे.

लिव इन रिलेशनशिप

पीड़िता एक नर्स है और अभियुक्त डॉक्टर के साथ महाराष्ट्र के एक प्राइवेट मेडिकल इंस्टीट्यूट में काम करती थी. जहां दोनों को एक-दूसरे से प्यार हो गया और दोनों साथ रहने लगे.

पीड़िता ने डॉक्टर के खिलाफ़ ये कहकर एफ़आईआर दर्ज़ करवाई कि उन्होंने उससे शादी का वादा करके शारीरिक सम्बन्ध बनाए थे लेकिन किसी और महिला से शादी कर ली.

इसके बाद अभियुक्त डॉक्टर ध्रुवराम मुरलीधर सोनार ने बॉम्बे हाई कोर्ट में अपने ख़िलाफ़ हुई एफ़आईआर रद्द करने के लिए याचिका दायर की. लेकिन कोर्ट ने डॉक्टर की दलीलों को खारिज़ कर दिया और एफ़आईआर बरकरार रखी, जिसके तहत अभियुक्त की कभी भी गिरफ्तारी की जा सकती थी.

लगभग छह महीने पहले डॉक्टर सोनार इस मामले को सुप्रीम कोर्ट लेकर गए, जहां जस्टिस एके सीकरी और एस अब्दुल नज़ीर की खंडपीठ ने फ़ैसला अभियुक्त डॉक्टर के पक्ष में दिया.

कोर्ट ने कहा:

बलात्कार और सहमति से सेक्स के बीच अंतर है. लिव इन पार्टनर्स अगर किन्हीं कारणों से शादी नहीं कर पाते हैं तो महिला बलात्कार का मामला नहीं चला सकती है.

लिव इन रिलेशनशिप

लाइव लॉ पर मौजूद जजमेंट के अनुसार पीड़िता को अभियुक्त से प्यार हो गया था. दोनों काफ़ी समय तक साथ रहे थे लेकिन जैसे ही पीड़िता को पता चला कि याचिकाकर्ता किसी दूसरी महिला से शादी करने जा रहे हैं, उन्होंने डॉक्टर के खिलाफ़ एक शिकायत दर्ज़ करवा दी.

लिव-इन रिश्तों पर क्या सोचते हैं लोग?

लिव-इन रिलेशनशिप पर आम राय यही है कि लिव इन में वही लोग रहते हैं जो शादीशुदा ज़िंदगी जीना तो चाहते हैं, लेकिन ज़िम्मेदारी उठाने से बचते हैं. लिव इन रिलेशनशिप पूरी तरह से दो लोगों की आपसी सहमति और समझ पर आधारित होती है, जिसमें न तो कोई सामाजिक दबाव होता है और न ही क़ानूनी बंधन.

ऐसे में दो लोगों के बीच यदि सहमति से कोई शारीरिक रिश्ता बनता है तो उसे रेप नहीं माना जायेगा, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने फ़ैसले में साफ़ किया है.

कानूनी मामलों के जानकार एडवोकेट विराग गुप्ता कहते हैं कि जब सेक्स के दौरान कोई जबरदस्ती ही नहीं की गई तो वो रेप कैसा.

वो कहते हैं, ”कानून में रेप को पहले से ही परिभाषित किया गया है. लेकिन अलग-अलग मामलों में इसका दुरुपयोग होने लगा.”

विराग गुप्ता के मुताबिक, दुरुपयोग के तीन पहलू थे.

पहला, ऐसी शिकायतें काफ़ी समय बाद दर्ज़ होती थी. जबकि ऐसी शिकायतें अपराध होने के तुरंत बाद दर्ज़ हो जानी चाहिए. दूसरा, शादी का वादा कर किसी से संबंध बनाना और शादी न करने पर भी इस तरह के आरोप लगाए जाते थे. तीसरा, इस तरह के प्रत्येक आरोपों में कम से कम एक सबूत ज़रूर होना चाहिए.

एडवोकेट गुप्ता का मानना है कि संसद को आगे चलकर ऐसे रिश्तों के लिए क़ानून बनाना पड़ सकता है.

रेप

विराग कहते हैं, ”इस मामले में एक डॉक्टर और नर्स के बीच संबंध थे. रेप मामलों में कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप को एक नई मान्यता दी है. संसद को आगे चलकर इसके लिए कानून बनाना पड़ेगा क्योंकि लिव-इन रिलेशनशिप में घरेलू हिंसा, सिंगल मदर और सिंगल फादर को भी मान्यता मिल रही है. मैरिटल रेप अगर अपराध की श्रेणी में शामिल हो गया तो वो भी लिव-इन में जुड़ सकता है. ऐसे ही कई अधिकारों की मान्यता मिल सकती है. लिव-इन रिलेशनशिप में अलग हुए व्यक्ति को सेपरेशन के तहत रख-रखाव का पैसा दिए जाने के मामले भी आए हैं. इन सब मामलों में कई क़ानूनन सुधार होने है, जिनके लिए क़ानून में अभी कोई बदलाव नहीं किया गया है.”

विराग गुप्ता के मुताबिक, इस मामले में भी लिव-इन में रहने के बाद ही रेप का आरोप लगाया गया है. लेकिन बलात्कार का शाब्दिक अर्थ ही है फ़ोर्सफुल एक्ट. अगर फ़ोर्स का अभाव है तो वो रेप कैसा! ये रिश्ता एक तरह के विश्वास और सहमति पर आधारित होता है.

कानून

रेप का आरोप ही क्यों?

एडवोकेट गुप्ता एक उदाहरण देकर समझाते हैं कि अगर कोई सेक्स वर्कर पैसों के बदले कुछ काम करती है लेकिन बाद में वो व्यक्ति उसे रक़म देने से मना कर दे तो क्या बलात्कार की श्रेणी में आ सकता है. मोटे तौर पर देखा जाए तो यहां बलात्कार नहीं होगा लेकिन और दूसरे अपराध हो सकते हैं.

इसी तरह ये मामला भी थी जिसमें महिला से शादी का वादा किया गया लेकिन वो पूरा न करने पर उसने रेप का आरोप लगा दिया. यहां और भी दूसरे अपराध हो सकते हैं जैसे उत्पीड़न, दूसरे तरह के भरोसे तोड़ना आदि. लेकिन भारत में सिविल मामलों में न्याय नहीं मिलता इसलिए क्रिमनल मामलों की प्रवृत्तियां बढ़ गई है.

विराग गुप्ता मानते हैं कि लिव-इन रिलेशनशिप, अडल्ट्री कानून के दुरुपयोग और अतार्किक गिरफ़्तारी के इन सारे मामलों को मिलाकर नए तरह के कानून बनाने की आवश्यकता आ गई है.

Sources :- BBC.com

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