Wednesday, January 22, 2025
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महाराजगंज के रण में इस बार त्रिकोणीय मुकाबला

महात्मा गांधी और महराजगंज के बीच एक खास रिश्ता है। दोनों का जन्म 2 अक्टूबर को हुआ।

महात्मा गांधी और महराजगंज के बीच एक खास रिश्ता है। दोनों का जन्म 2 अक्टूबर को हुआ। बापू 1869 में जन्मे और महराजगंज ठीक 120 साल बाद 1989 को बना। उससे पहले तक यह गोरखपुर जिले का हिस्सा था। नेपाल की दक्षिणी और उप्र की पूर्वोत्तरी सीमा पर स्थित जिले महराजगंज के महात्मा गांधी से कुछ और रिश्ते भी हैं। मसलन 5 अक्टूबर 1929 को गांधी जी ने महराजगंज में सभा की और पूरा जिला गांधीमय हो गया।

अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ गांव के गांव उठ खड़े हुए। मई 1931 में जमींदारों ने महराजगंज के खेसरारी गांव को लुटवा दिया, क्योंकि ग्रामीण बढ़ी हुई दर पर लगान नहीं दे रहे थे। महराजगंज के ग्रामीणों पर अत्याचार का यह मामला महात्मा गांधी ने इंग्लैंड की गोल मेज कांफ्रेंस में भी उठाया। ऐसे रोचक इतिहास वाले महराजगंज में 19 मई को मतदान होना है। भाजपा यहां अपनी सीट बचाने की हर कोशिश कर रही है तो गठबंधन और कांग्रेस सीट छीनने की कोशिश में हैं। जनता किन मुद्दों पर मतदान करने वाली है? जातियों की पकड़ कितनी मजबूत है? राष्ट्रीय मुद्दों पर कैसी बहस चल रही है? इन सवालों का जवाब तलाशने की कोशिश की आशीष त्रिपाठी और अभिषेक राज ने…

महराजगंज देश की ऐसी लोस सीटों में से एक है, जिसका पहला सांसद निर्दलीय था। 1957 में पहली बार महराजगंज लोस सीट बनी और निर्दलीय प्रो. शिब्बन लाल सक्सेना ने सभी दलों को हरा कर जीत हासिल की थी। उन्होंने यह सफलता 1971 में भी दोहराई। फिलहाल इस सीट पर भाजपा का कब्जा है। सांसद पंकज चौधरी छठी बार जीत के लिए जूझ रहे हैं। उन्होंने भाजपा के टिकट पर ही 1991 से 1998 तक तीन चुनाव लगातार जीते थे। उसके बाद 2004 और 2014 में भी वह सांसद चुने गए।

इस बार उनका मुकाबला गठबंधन के प्रत्याशी सपा नेता अखिलेश सिंह से है, जिन्होंने 1999 में यह सीट जीती थी। कांग्रेस की सुप्रिया श्रीनेत पत्रकारिता का कॅरिअर छोड़ कर चुनाव में उतरी हैं। उनके पिता हर्षवर्धन दो बार (1989 और 2009) इस सीट से सांसद चुने गए थे। शिवपाल यादव की पार्टी प्रसपा ने बाहुबली पूर्वमंत्री अमरमणि त्रिपाठी की बेटी तनुश्री त्रिपाठी को प्रत्याशी बनाया था। दिलचस्प बात यह कि प्रसपा द्वारा तनुश्री को प्रत्याशी घोषित करने के एक दिन बाद जारी लिस्ट में कांग्रेस ने उन्हें अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया था। बाद में उनकी जगह कांग्रेस ने सुप्रिया श्रीनेत को उम्मीदवार बनाया। अंतत: तनुश्री ने चुनाव के लिए पर्चा ही नहीं भरा। मुख्य मुकाबले में भाजपा, गठबंधन और कांग्रेस ही हैं। महराजगंज लोस सीट के तहत आने वाले पांच विस क्षेत्र में चार पर भाजपा का कब्जा है। एक सीट नौतनवां पर निर्दलीय अमनमणि त्रिपाठी विधायक हैं। 

महराजगंज क्षेत्र के कस्बों से गांवों तक राष्ट्रीय मुद्दे चर्चा में तो हैं लेकिन अंतत: जातीय गणित मजबूत दिखती है। यह पिछड़ी बहुल सीट हैं, जहां तकरीबन 60 फीसदी आबादी पिछड़े वर्ग की है। अकेले पटनवार जाति के लोग 25 प्रतिशत से ज्यादा हैं। निषाद, ब्राह्मण और मारवाड़ी 10-10 प्रतिशत के करीब हैं। प्रत्याशी से कार्यकर्ता और मतदाता तक मुद्दों की बात करते हैं लेकिन अंदरखाने जाति ही प्रभावी दिखती है। 
‘न्याय’ पर भरोसा नहीं, गठबंधन भला करेगा: शहर के सटे गांव धनेवा धनेई की गलियां सूनी पड़ी हैं। लगता ही नहीं इस इलाके में चुनाव हो रहा है। इस मुस्लिम बहुल गांव की आबादी 10 हजार से ज्यादा है। यहां सरकारी योजना के तहत 700 टॉयलेट बने। 100 घरों तक उज्ज्वला गैस कनेक्शन पहुंचे। 150 लोगों को सौभाग्य योजना से बिजली कनेक्शन मिला है। सैकड़ों किसानों को किसान सम्मान निधि भी मिली लेकिन इस गांव के ज्यादातर लोग भाजपा से खफा हैं। 

प्रधान पति नसीम खान कहते हैं,  ‘हम विकास चाहते हैं, मंदिर-मस्जिद की बातें नहीं। जति-धर्म में बांट कर ध्यान भटकाने की कोशिश हो रही है।’ उनके साथ मौजूद गांव के अकरम, फजुल्लाह, सादिक, इब्राहिम, मो. जगदैल और हामिद कहते हैं-हमें देश विरोधी कह कर बदनाम किया जाता है। हमारा गांव देखिए, हिन्दू-मुस्लिम सब साथ रहते हैं। मिलजुल कर त्योहार मनाते हैं। इस समूह को केंद्र सरकार की तीन बातें सबसे खराब लगती हैं। नसीम कहते हैं-ह्णभाजपा सरकार काम से ज्यादा काम के प्रचार पर लगी रही। विकास उन्हीं इलाकों में किया जहां उन्हें वोट मिले। अकरम और सादिक इसमें जोड़ते हैं- ह्यभाजपा सरकार मुसलमानों के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप कर रही है। इन नौजवानों को कांग्रेस से बहुत उम्मीद नहीं है। गरीबों को 72 हजार रुपये देने वाली ‘न्याय’ योजना को वे कोरी बयानबाजी बताते हैं। इन सभी को गठबंधन पर भरोसा है। सादिक और हामिद कहते हैं- ह्य इस सरकार में खाद की बोरी में वजन कम कर दिया गया। खाद की कीमत भी बढ़ा दी गई। कांग्रेस से उम्मीद बेमानी है। हमारा भला गठबंधन सरकार में ही हो सकता है। इसलिए हम उसके साथ हैं। यही भाजपा को हराने में सक्षम है।

भाजपा का काम बेहतर पर साथ देंगे गठबंधन का :महराजगंज शहर से करीब 12 किमी दूर दलित बहुल गांव करमहा। साढ़े सात हजार आबादी। इस गांव में 5 प्रधानमंत्री आवास बने। 800 टॉयलेट। 300 घरों तक उज्जवला गैस पहुंची। 25 सौभाग्य बिजली कनेक्शन। गांव के लोगों ने यह तो माना कि केन्द्र सरकार ने गरीबों के लिए काम किया लेकिन उतना नहीं, जितनी उम्मीद थी। तपती दोपहर में ताश खेलकर वक्त काट रहे प्रहलाद, सुखराम, ललई, छट्ठू, जगदंबा, सम्हारू और प्रेम प्रकाश ने कहा-योजनाएं तो सारी सरकारें लाती हैं। यहां गांव की सड़क देखिए। टूटी हुई है। उज्ज्वला गैस कनेक्शन मिला लेकिन सौभाग्य योजना के नाम पर उगाही की गई। पेंशन बंद कर दी गई। 

विधवा, वृद्धा पेंशन के लिए प्रदेश में भाजपा सरकार बनने के बाद से परेशानी बढ़ी। यह समूह मानता है कि किसान सम्मान निधि से किसानों को पूरा लाभ मिला है। चुनाव पर इसका असर भी पड़ेगा, लेकिन वे गठबंधन का साथ देंगे। क्योंकि भाजपा सरकार में बेरोजगारी बढ़ी है। नेशनल हाईवे तो बन रहे हैं लेकिन गांव की सड़कों को कोई नहीं पूछ रहा है। भ्रष्टाचार के खात्मे का ढिंढोरा पीटा गया पर यह कम नहीं हुआ। गरीबों का शोषण बढ़ गया है। उन्हें कांग्रेस की न्याय योजना जुमलेबाजी लगती है। प्रहलाद और जगदंबा कहते हैं-चुनाव बाद कांग्रेस खुद ही इसे भुला देगी।
तरक्की से सुरक्षा तक भाजपा ने सब किया: पिछड़ी आबादी वाले गांव बांसपार बैजौली की आबादी 6000 से ज्यादा है। यहां 10 प्रधानमंत्री आवास और 600 टॉयलेट बने। 134 उज्ज्वला गैस कनेक्शन और 70 सौभाग्य बिजली कनेक्शन दिए गए।

गांव के सैकड़ों लोगों तक किसान सम्मान निधि पहुंची है। गांव में पटनवार, बरई, यादव के साथ ही धोबी और कमकर जाति के लोग भी हैं। गांव के अनिल, संतोष, प्रवीण, सकलाज, रामप्रीत, उमेश, भगेदू, और कलवारी कहते हैं- मोदी और योगी की सरकारों ने शानदार काम किया। खेती किसानी के लिए पैसा मिल रहा है। राशन घोटाला रुका है। 

सब्सिडी भी खाते में सीधे मिल रही है। इस गांव के ज्यादातर लोग कांग्रेस के 72 हजार रुपये देने के वादे को वास्तविकता से परे मानते हैं। संतोष, प्रवीण और रामप्रीत का सवाल है कि कांग्रेस इतने रुपये कहां से लाएगी। आखिर वह हम लोगों पर ही टैक्स थोपकर कुछ हिस्सा हमें वापस करेगी। यहां नौजवान मोदी को त्वरित फैसला लेने और पाकिस्तान को करारा जवाब देने वाला नेता मानते हैं। सर्जिकल और एयर स्ट्राइक को नए भारत की पहचान करार देते हैं।

42 गांंवों को कांग्रेेेस पर भरोसा
महराजगंज सदर तहसील का बयालिस गांवां घनी मुस्लिम आबादी वाले 42 गांवों का इलाका है। इस इलाके में बड़हरा, पिपरा, बरगदही, लक्ष्मीपुर, धनहा, बैजोली, हरपुर जैसे गांव हैं। इन गांवों के नौजवान रियाज, अनीस, शाद आलम, बख्तियार और गुलाम रसूल कहते हैं-देश में कांग्रेस ही भाजपा का मुकाबला करने की स्थिति में है। सपा-बसपा ने भी मुसलमानों के लिए काम किया है लेकिन जब बात केंद्र की सरकार की हो तो हम कांग्रेस पर भरोसा करते हैं। उन्हें मोदी के मुकाबले राहुल गांधी में अपना भविष्य दिखता है। इस इलाके के छात्र चांद मोहम्मद और ऐतबार ने कहा-भाजपा सरकार आने के बाद सांप्रदायिकता और कट्टरता बढ़ी है। मुल्क की सबसे बड़ी अल्पसंख्यक आबादी को डरा कर कोई सरकार लंबे वक्त तक राज नहीं कर सकती। हम इस बार बंटेंगे नहीं, कांग्रेस का साथ देंगे। 

अब तक सांसद
1957: प्रो.शिब्बन लाल सक्सेना, निर्दल 
1962: महादेव प्रसाद, कांग्रेस    
1967: महादेव प्रसाद, कांग्रेस 
1971: प्रो. शिब्बन लाल सक्सेना,निर्दल 
1977: प्रो.शिब्बन लाल , लोकदल   
1980: अशफाक हुसैन अंसारी, कांग्रेस 
1984: जितेंद्र सिंह, कांग्रेस 
1989: हर्षवर्धन, जनता दल 
1991: पंकज चौधरी, भाजपा 
1996: पंकज चौधरी, भाजपा 
1998: पंकज चौधरी, भाजपा 
1999: अखिलेश सिंह, सपा 
2004: पंकज चौधरी, भाजपा 
2009: हर्षवर्धन, कांग्रेस 
2014: पंकज चौधरी, भाजपा   
(1952 के पहले लोकसभा चुनाव में महराजगंज गोरखपुर का हिस्सा था। )का साथ देंगे।

2014 का रिजल्‍ट
पंकज चौधरी, भाजपा     4,71, 542  
काशीनाथ शुक्ल, बसपा  2,31, 084
अखिलेश सिंह,   सपा    2,13, 974

कुल मतदाता 19,12,910

पुरुष 10,21,199 

महिला  9,91,448

थर्ड जेंडर-263 

विधानसभा सीटें

महराजगंज सदर, फरेंदा, सिसवा, नौतनवां, पनियरा

चुनावी मुुुुददे 

बकाया गन्ना भुगतान 
गड़ौरा चीनी मिल पर किसानों का 2014 से 2016 तक का 46 करोड़ रुपये बकाया है। बार-बार आश्वासन के बाद भी बकाया भुगतान नहीं हुआ। अब नए सिरे से मिल की संपत्ति नीलाम कर भुगतान की तैयारी है। 

जिला मुख्यालय रेल लाइन 
महराजगंज देश के उन थोड़े से जिलों में एक है, जहां मुख्यालय रेलवे लाइन से महरूम है। जिला मुख्यालय को रेल लाइन से जोड़ने का मुद्दा दशकों से उठाया जा रहा है। रेलवे ने महराजगंज को रेल लाइन से जोड़ने के लिए घुघली-फरेंदा रेल मार्ग का खाका खींचा है। इस योजना के मुताबिक रूट पर कुल सात स्टेशन होंगे। यह योजना फाइलों पर हर बजट के दौरान बनती-बिगड़ती है। हर चुनाव में यह मुद्दा उछलता है। हर दल इसे भुनाता है। लेकिन महराजगंज रेल लाइन से नहीं जुड़ पाता। 

रोहिन बैराज 
नौतनवा तहसील की सिंचाई व्यवस्था रोहिन नहर प्रणाली पर निर्भर है। इसके लिए हर साल रोहिन नदी में मिट्टी से बांध बनाया जाता है। सिंचाई के बाद उसे गिरा दिया जाता है। इस प्रक्रिया में हर साल लाखों का वारा-न्यारा होता है। रोहिन नहर पर बैराज निर्माण की मांग कई दशक पुरानी है। अभी तक बैराज निर्माण की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं हो सकी।  

जंगल किनारे तार बाड़
वन संपदा के मामले में महराजगंज पूर्वांचल में सबसे समृद्ध है। यहां की सोहगीबरवा सेंक्चुरी अपनी विविधता के लिए विख्यात है। वन्य जीवों के कारण जंगल के किनारे के किसानों की फसल चौपट हो जाती है। किसान पूरी-पूरी रात जगकर फसलों की रखवाली करते हैं। इसके बाद भी फसल सुरक्षित नहीं रहती। इससे निचलौल, सदर, नौतनवा और फरेंदा तहसील के हजारों किसान प्रभावित हैं। करीब एक लाख किसान तार बाड़ लगाने की मांग कर रहे हैं

‘बाढ़ से निजात नहीं
महराजगंज जिला रोहिन, राप्ती, छोटी गंडक, चंदन और प्यास नदी की बाढ़ से हर साल प्रभावित होता है। करीब आधी आबादी बाढ़ की चपेट में रहती है। अभी तक बाढ़ बचाव के लिए ठोस पहल नहीं हो सकी है। रोहिन के बंधे जर्जर हैं। पानी का दबाव कम करने के लिए कई जगहों पर काम भी हुआ, लेकिन चंदन और प्यास के तटबंधों की मरम्मत नहीं हो सकी।  

गणेश चीनी मिल
फरेंदा की पहचान गणेश चीनी मिल से रही है। इसे 1994 में बंद कर दिया गया। 2014 के चुनाव में वादा किया गया था कि जीत के बाद मिल को चलवाएंगे लेकिन अभी तक मिल बंद ही है। 2017 के विधानसभा चुनाव में वादा किया गया कि चीनी मिल की जगह कपड़ा मिल का प्रस्ताव भेजा गया है। जल्द ही नई यूनिट शुरू होगी लेकिन इस वादे पर भी अमल नहीं हो सका। 


गड़ौरा चीनी मिल

निजी क्षेत्र की जेएचबी गड़ौरा चीनी मिल ने इस बार पेराई नहीं की। गन्ना आवंटन की मांग को लेकर प्रबंधन ने मिल चलाने से इनकार कर दिया। निचलौल तहसील क्षेत्र का करीब 57 लाख टन गन्ना सूखने की कगार पर पहुंच गया। किसानों का दबाव पड़ने पर शासन ने यहां का गन्ना कुशीनगर, घोसी की छह मिलों को आवंटित किया। खरीद केंद्र भी शुरू हुए लेकिन गन्ने की उठान नहीं हो सकी।


घुघली चीनी मिल
जिले में औद्योगिक क्रांति की शुरुआत करने वाले घुघली की पहचान 1926 में स्थापित चीनी मिल से थी लेकिन 1999 में मिल बंद हो गई। आश्वासन दिए गए कि मिल चलेगी लेकिन मिल नहीं चली। अलबत्ता 2010 में बसपा सरकार ने मिल को बेच दिया।

Source :- www.livehindustan.com

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