Friday, July 26, 2024
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पूर्वांचल के गांधी शिब्बन थे महराजगंज के पहले सांसद

शिब्बन लाल सक्सेना शिक्षाविद, स्वतंत्रता सेनानी एवं राजनेता थे। वह संविधान सभा के सदस्य तथा सांसद रहे

महराजगंज। शिब्बन लाल सक्सेना शिक्षाविद, स्वतंत्रता सेनानी एवं राजनेता थे। वह संविधान सभा के सदस्य तथा सांसद रहे। पेशे से डिग्री कॉलेज के अध्यापक शिब्बन लाल सक्सेना ने 1932 में महात्मा गांधी के आह्वान पर स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी की। उन्होंने महराजगंज के किसानों और मजदूरों के सामाजिक-आर्थिक उन्नति के लिए कार्य किया। उन्हें पूर्वांचल का गांधी और लेनिन कह कर संबोधित किया जाता है। विज्ञापन

  शिब्बन लाल आजीवन अविवाहित रहे और दलितों, शोषितों के उत्थान के लिए संघर्षरत रहे। अपने 58 साल के राजनीतिक जीवन में वह 17 बार गिरफ्तार कर जेल भेजे गए। कुल करीब 13 साल उन्होंने विभिन्न जेलों में बिताए। जिसमें से 10 वर्ष कठिन श्रम के साथ कारावास की सजा भी शामिल थी। वह महरागजंज के पहले सांसद थे। राजनीति विज्ञान के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. घनश्याम शर्मा ने बताया कि शिब्बन लाल सक्सेना का जन्म 13 जुलाई 1906 को उनके मामा के घर आगरा में हुआ। उनके पिता का नाम छोटेलाल सक्सेना था। वह पोस्टमास्टर के पद पर तैनात थे। बरेली में आंवला तहसील के बल्लिया नामक गांव के मूल निवासी थे।

शिब्बन लाल की प्रारंभिक और माध्यमिक शिक्षा कानपुर के शासकीय हाईस्कूल, क्राइस्ट चर्च इंटर कॉलेज और डीएवी कॉलेज में हुई। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उन्होंने 1927 में बीए की परीक्षा गणित और दर्शन शास्त्र विषयों के साथ स्वर्ण पदक प्राप्त कर उत्तीर्ण की। वर्ष 1929 में उन्होंने गणित विषय से एमए की परीक्षा स्वर्ण पदक प्राप्त कर उत्तीर्ण की। सन 1930 में शिब्बन लाल गोरखपुर के संट एंड्रयूज कॉलेज में गणित के प्रवक्ता के पद पर नियुक्त किए गए। उनके राजनीतिक जीवन में कई बार उतार-चढ़ाव आया। वर्ष 1957 में पहली बार निर्दल सांसद चुने गए। निकटतम प्रतिद्वंद्वी हरिशंकर उन्होंने 27 हजार मतों से हराया। वर्ष 1962 में वह लोकसभा चुनाव महादेव प्रसाद से हार गए। इसके बाद 1967 में महंथ दिग्विजय नाथ को 42 हजार मतों से हराया।

वर्ष 1971 में निर्दल चुनाव जीते। वर्ष 1977 में रघुबर प्रसाद को हराकर सांसद बने। उनका निधन 20 अगस्त 1984 को हुआ। शिब्बन लाल शुरू से ही स्वराज आंदोलन से प्रभावित थे। जिसकी वजह से वह हमेशा ही लोगों की नजरों में रहे। विश्वविद्यालय में एक बार किसी उत्सव में भाग लेने पहुंचे शिब्बन लाल ने शेरवानी पहन रखी थी, जिसे देखकर प्राचार्य ने उन्हें देशी पहनावा पहनने के लिए टोक दिया। शिब्बन लाल ने उसी समय से अंग्रेजी वेशभूषा को त्यागने का प्रण किया और आजीवन धोती और कुर्ता ही पहनते रहे। वह पढ़ाई के साथ खेल को भी महत्व देते थे। उनका मानना था कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का विकास होता है। वह पहलवानी करते थे और विश्वविद्यालय में फुटबाल टीम के कप्तान थे। 

वर्ष 1919 में हुए जलियां वाला कांड ने जब पूरे देश हिला कर रख दिया, तब कानपुर में शिब्बन लाल ने भी 13 वर्ष की उम्र में विरोध जुलूस का नेतृत्व किया और पकड़े गए। उस समय उन्हें तीन बेतों की सजा मिली। इससे उनका आत्मविश्वास और मजबूत हुआ और देश की आजादी के लिए चल रही लड़ाई में सर्वस्व न्योछावर करने के लिए  प्रेरित हुए। वर्ष 1937  से 1940 तक शिब्बन लाल ने विभिन्न किसान आंदोलनों के माध्यम से अंग्रेज सरकार को परेशान कर दिया। जिसकी वजह से सरकार को जमीन का फिर से सर्वे कराना पड़ा और फिर से आवंटन भी करना पड़ा। यह वही व्यवस्था थी, जिसकी वजह से तत्कालीन महराजगंज के एक  लाख 25 हजार किसानों को  उनकी जमीनों पर मालिकाना हक प्राप्त हुआ।

Source :- www.amarujala.com

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