सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज पिनाकी चंद्र घोष को देश का पहला लोकपाल नियुक्त किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज पिनाकी चंद्र घोष को देश का पहला लोकपाल नियुक्त किया गया है। लोकपाल मामले से जुड़े एक अधिकारी ने इसकी जानकारी दी। हालांकि आधिकारिक घोषणा होनी बाकी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन और भारत के मुख्य न्यायधीश जस्टिस रंजन गोगोई और एडवोकेट मुकुल रोहतगी के नेतृत्व वाली चयन समिति ने पी.सी. घोष के नाम पर मुहर लगाई।
लोकपाल के लिए बनाई गई समिति में लोकपाल के लिए 10 नामों का चयन किया गया था, जिसमें जस्टिस घोष का भी नाम शामिल था। मई, 2017 में सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत होने के बाद जस्टिस घोष ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ज्वॉइन कर लिया था।
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भ्रष्टाचार विरोधी कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने लोकपाल नियुक्ति में देरी के विरोध में आंदोलन का एक और दौर शुरू किया था, जिसके बाद लोकपाल के लिए विज्ञापन जारी किया गया था। उन्होंने अपना आन्दोलन इस वादे के बाद समाप्त किया कि जल्द ही लोकपाल का गठन किया जाएगा।
इस पद के लिए काफी आलोचनाओं के बीच लोकसभा चुनाव से ठीक पहले आवेदन आमंत्रित किए गए थे। नौ सदस्यीय लोकपाल चयन समिति की पहली बैठक इसके गठन के लगभग चार महीने बाद जनवरी में हुई थी। समिति में भारतीय स्टेट बैंक की पूर्व प्रमुख अरुंधति भट्टाचार्य, प्रसार भारती के अध्यक्ष ए. सूर्य प्रकाश और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के प्रमुख ए.एस. किरण कुमार सदस्य के रूप में शामिल हैं।
लोकपाल के न्यायिक सदस्य के लिए निर्धारित योग्यताएं
लोकपाल के न्यायिक सदस्य बनने के लिए आवेदक को या सर्वोच्च न्यायालय का वर्तमान या पूर्व प्रधान न्यायाधीश या किसी भी उच्च न्यायालय का वर्तमान या पूर्व मुख्य न्यायाधीश होना चाहिए। वहीं, गैर-न्यायिक सदस्यों में भ्रष्टाचार रोधी संबंधित क्षेत्र का 25 सालों का अनुभव रखने वाला कोई भी व्यक्ति हो सकता है।
यह पात्रता लोकपाल अधिनियम के मुताबिक निर्धारित की गई है। चेयरमैन पद का आवेदक कोई निर्वाचित प्रतिनिधि या कोई भी व्यवसाय करने वाला या किसी भी क्षेत्र का पेशेवर नहीं हो सकता है। इसके अलावा उम्मीदवार किसी ट्रस्ट या लाभ के पद पर भी नहीं होना चाहिए। अध्यक्ष का कार्यकाल पांच वर्ष का होगा और वेतन भारत के प्रधान न्यायाधीश के बराबर होगा।
लोकपाल अध्यक्ष बनने के बाद किसी अन्य लाभ के पद पर नहीं रह सकते
अध्यक्ष बनने के बाद, उस व्यक्ति को सरकार से किसी भी प्रकार पद (राजनयिक पद समेत) प्राप्त करने की अनुमति नहीं होगी और न ही वह सरकार में किसी लाभ के पद पर नियुक्त हो सकेगा। इसके अलावा अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद पांच साल तक संसद या राज्य विधानसभाओं के चुनाव लड़ने पर रोक रहेगी। इस पद के लिए न्यूनतम आयु मानदंड 45 वर्ष है।
Source :- www.livehindustan.com